यँू ही नहीं निकल आते आँखों से आँसू
कहीं तो दिल में दर्द जरूर होता है
ऐसे ही नहीं लग जाती हमें राहों में ठोकर
किसी न किसी की याद खोया दिल ,जरूर होता है
हँसते- हँसते यँू ही नहीं बिखर जाती है, जिन्दगी
कहीं न कहीं अपनी ही लापरवाही का कसूर होता है
हमें यूँ ही नफरत नहीं हो जाती किसी से
कहीं न कहीं उसकी बेरूखी या मक्कारी का कसूर होता है
हर जंग में जीतना जनून है, लेकिन
रिष्तों को बचाने के खातिर;
हार जाने में खुषी का नषा जरूर होता है
म्ूार्ख नहीं है नारी, जो लुटा देती है सब कुछ प्यार में
उसकी विनम्रता त्याग बलिदान का कसूर होता है
इन्सान के रूप में लिपटे वो दरिन्दे, क्या जाने
जिन्होंने माँ, बहन ,बेटी व पत्नी
के सपनों को,किया चकनाचूर होता है
सुषमा देवी
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