Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

माँ

 

माँ तो आखिर माँ होती है

म्ेारे जगने से पहले जगती है

म्ेारे सोने के बाद सोती है

जीवन दिया हमको उसने

यह अदभुत धरा होती है

दुखों की कड़ी घूप में

ठण्डी सी बौछार होती है

माँ तो आखिर माँ होती है

दुनियां की गरमाहट मैया

चन्द्र सी षीतल होती है

थोड़ी सी मुसीबत पड़ने पर

दीवार सी खड़ी होती है

कितने दुःख पहुँचाए बच्चा

माँ के ह्रदय में दया होती है

सबसे जुदा सबसे अलग

हर दिखाबे से ऊपर होती है

माँ तो आखिर माँ होती है

बच्चे के लिए हर खतरा झेले

बिन माँ हम मेले में अकेले

रिष्तों के इस भरे जहां में

अपने गम भुला कर सारे

हमारी खुषियों मे खुष होती है

हर सवाल का हल होता है

प्रभु की ऐसी अदभुत रचना

षब्दों में न वयां होती है

माँ तो आखिर माँ होती है


 

सुषमा देवी

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ