Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तारे

 

नभ में चमकें कितने सारे

अनगिनत हैं आकाष में तारे

चमचम करते लगते प्यारे

सारी रात हैं जगते सारे

चन्दा संग न धरा पर उतरे

बचपन से हम इन्हें निहारें

हमारे यह पास न आते

हमें न अपने पास बुलाते

दूर से हैं ये हमें चिढाते

न संग खेलें न हाथ मिलाते

कुदरत के क्या खूब नजारे

धरा से देखें हम मिल सारे

कभी न बदलें इनके नजारे

बचपन से हम इन्हें निहारें

काष हम भी बन पाते तारे

नभ पे लेते खूब नजारे

कौन सी कसरत करे ये तारे

आज भी हैं उतने ही प्यारे

षायद इनके संगठन की षक्ति

तभी युगों तक चमक है प्यारे


 

 

सुषमा देवी

 

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