Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

उस पार

 

उस पार ...
कहीं से आवाज़ आती है..
हमें कातर करुणा से बुलाती है!

शायद गीत है कोई भुला हुआ सा..
जिसमें दुःख की कोई रागिनी है बजती हुई सी
जिसमें हल्की सी आँच है जिंदगी की
जिसमें मंद सिहरन भी है उसके ठंढ की।

बेला डूब रही है
साँसे थम रही हैं
जिंदगी का चलचित्र चल रहा है
अकेली साँझ के झुरमुट में ।
 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ