मन के कारोबार में
प्यार की पूंजी
दाव पर होती है
कोई बही-खाता नहीं होता
इसलिए
तुम्हारी शर्तें
सूद की तरह
चढ़ती गयीं मुझपर
जिसे चुकाते-चुकाते
अपने मूलधन को
खो रहा हूँ
तमाम मजबूरियों के बावजूद
मैं कारोबारी हो रहा हूँ
सुशील कुमार
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