Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मन का कारोबार

 

मन के कारोबार में
प्यार की पूंजी
दाव पर होती है

 

कोई बही-खाता नहीं होता
इसलिए
तुम्हारी शर्तें
सूद की तरह
चढ़ती गयीं मुझपर
जिसे चुकाते-चुकाते
अपने मूलधन को
खो रहा हूँ

 

तमाम मजबूरियों के बावजूद
मैं कारोबारी हो रहा हूँ

 

 

सुशील कुमार

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