Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सलीब

 

 

दिशाओं के अहंकार को ललकारती भुजाएं
और
चीखकर बेदर्दी की इन्तहां को चुनौती देतीं
हथेलियों में धसीं कीलें

 

एक-एक बूंद टपकता लहू
जो सींचता है उसी जमीन पर
लगे फूल के पौधों को
जहाँ सलीब पर खड़ा है सच
जब भी लगता है कि
हार रहा है मेरा सच
सलीब को देखता हूँ

 

लगता है कोई खड़ा है मेरे लिए
झूठ के खिलाफ

 

 

सुशील कुमार

 

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