Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शहर में चांदनी

 

भागो कि सब भाग रहे हैं
शहर में
कंकड़ीले जंगलों में
मुंह छिपाने के लिए
चाँद
ईद का हो या
पूर्णिमा का
टी.वी. में निकलता है अब
रात मगर क्या हुआ

 

मेरी परछाई के साथ
चांदनी चली आई
कमरे में
शौम्य, शीतल,
उजास से भरी हुई

 

लगा मेरा कमरा
एक तराजू है
और
मै तौल रहा हूँ
चांदनी को
एक पलड़े में रख कर
कभी खुद से
कभी अपने तम से

 

लगा रहा हूँ हिसाब
कितना लुट चुका हूँ
शहर में !

 

 

सुशील कुमार

 

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