Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अथ महाभारतम ......

 

हे इंडिया के भ्रष्ट टी.वी. चेनलो !


अगर सत्ता के तुम चमचे नहीं हो, तो पाटलीपुत्र के चुनावी दंगल के बारे में उत्सुक जनता को सही सही ‘भीतरी’ बात बताओ .......!
टी. वी. एंकर उवाच !
इधर अपने, ई सी ने आम चुनाव का आगाज कर दिया है, उधर लोग जीत हार के फर्जी आंकड़े जुटाने में लग गए हैं|इसे आम जनता तक चुनावी संभावना के नाम पर इलेक्शन पोल के ग्राफिक बना कर जीतने वाली ‘प्रायोजित पार्टी’ के बारे में ढिढोरा पीटना है |
आजकल ‘महा’ शब्द का चलन व्यवहार में बहुत आने लगा है,कोई इसे गठबंधन के आगे लगा रहा है कोई दलित वोटर को लुभाने के चक्कर में अपने नाम के पहले रखना चाहता है |किसी-किसी के द्वारा, इसे ‘पदवी-स्वरूप’ धारण करने की खींच-तान भी देखी जाती है|
किसी पार्टी ने, छोटे-मोटे दान से राज्य को उबारते हुए पूरे राज्य को ‘महादान’ देने का ऐलान, इलेक्शन-संभावना देखते हुए कर दिया |
देखा जाए तो ‘महा-नालायको’ के बीच में से , चंद ‘कम- महा-ना-लायक’ को चुनावी मैदान में उतारने का वादा हर पार्टी अपने-अपने तरीकों से कर रही है|
आइये आपको कुछ पार्टी दफ्तर में लिए चलते हैं |
ये ‘महा-गठी’ वालों का दफ्तर है|वो, जिनको ‘गठिया’ का दर्द रहता है ,वे इसके इलाज में आजीवन लगे रहते हैं |हाँ गुजरातियों के ‘गाठिये’ के स्वाद जिसने चखा है वे इसका लुफ्त भी जानते हैं |’चखना’ बतौर इसका इस्तेमाल कहीं-कही संभावित रहता है |
इस ‘महागठी’ की नीव जिसने रखी, वही नीव के पत्थर को निकाल के खिसक गया |
सारे गठबंधन वाले मिलकर, ‘मेढक’ को एक साथ टोकरे में रख के, तौलने का प्रयास शुरू किये थे| ’कंट्रोल’ ,’रिमोट कंट्रोल’ के स्विच को आन भी न कर पाए थे कि मेढक बाहर कूद-कूद के बाहर छिटकने लगे, नौबत बुरी देख के समझदार खुद भी छलांग लगा गए ....?
कहते हैं, नाव में एक छेद हो तो एक दूसरा छेद और कर लेना चाहिए जिससे एक से पानी भीतर घुसे तो दूसरी से निकल जावे|वही दूसरे छेद वाली तरकीब को जी जान से इस महा-गठी वालों द्वारा आजमाया जा रहा है|
एक दफ्तर में, टिकट-खिड़की खुलते ही, बंद होने का ऐलान हो गया |रिश्तों में, भाई-भतीजा ,दूर का भाई, दूर का भतीजा ,श्वसुर के नाती, सब को टिकट बाटने के बाद, बाबा जी के ठुल्लु के अलावा कुछ बचा नही, किसे क्या दें.......? पार्टी अध्यक्ष को बहुत अफसोस है सगे दामाद को टिकट न दे सके|अब किस मुह से भाई, बहन के घर राखी पर जाएगा|बहन कहेगी, जब तुम्हारे हाथ में बाटने की नौबत आई थी, तो कैसे इकलौते जीजा को भूल गए .....?कट्टी ,कट्टी .....
इधर देखिये ,ये फूट-फूट के रोने वाला शख्श, किसी समय, एम. एल. ए. हुआ करता था |इसकी टिकट काट दी गई|सिर्फ कटती तो बात नहीं थी ,इनका इल्जाम है, टिकट दो करोड़ में किसी दबंगई करने वाले को बेच दी गई|अब इसे खुदा का कहर न कहे तो क्या,पार्टी वाले भी सोच रहे, कि जिस आदमी को समय रहते कुछ कमाने का शऊर नहीं, विधायक रहते अपनी विधायकी बचाने लायक न कमा पाया, लानत है ! उसे पार्टी से भला क्या टिकट देना....? वे सडकों पर आने-जाने वालों को अपना दुखड़ा गली -गली सुना रहे हैं|
कुछ टिकट कटाई के खेल को, ‘स्पोर्टली’ लेते हैं |वे तत्काल अपने आदमी भेज के दूसरी पार्टी में मुआयना करवा लेते हैं ,’ग्रीन-सिंगनल’ और टिकट पक्का होते ही दूसरी पार्टी की चाशनी में घुल जाते हैं |बचे वो ,जिनके आका नहीं दीखते, वे वोट-कटुआ के रोल में निर्दलीय खड़े हो जाते हैं ,बाद में मान-मनौव्वल होने के पर , अधिक पैसे देने वाली पार्टी के हक़ में अपना नाम वापस ले लेते हैं |इसे ‘भागते भूत’ वाले केंडीडेट के नाम से जाना जाता है |
आइये ,अब हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवा रहे हैं ,जिसके पीछे पार्टिया, टिकट लिए-लिए घूमती हैं और वो इनकार किये रहता है |आज के जमाने में, ऐसे शख्श का मिलना अजूबा कहा जाएगा |चंद मिनट का उनका इंटरव्यू देख लीजिये ......
इस देश की दिग्गज पार्टियाँ आपको, अपना केन्डीडेट डिक्लेयर करना चाहती हैं और आप महाभारत के अर्जुन की तरह पीछे हटते रहते हैं क्या वजह है .....?
हे एंकर जनाब ! मै इलेक्शन किसके लिए लडू....?,किसके विरोध में खड़ा होऊं .....?सब मेरे पुराने समय के साथी हैं|किसी समय ये मेरे चेलेचपाटे थे |ये नहीं तो अब इनकी औलाद, मेरे मुक़ाबिल रहेगे ....इन्हें हराना मुझे शोभा देगा भला ....?और मै जीत के भी क्या भाड फोड़ सकूंगा .....तुमने सुना होगा अकेला चना भाड नहीं फोड़ सकता|मेरे अकेले की बात विधान सभा में क्या मायने रखेगी .....?चारों तरफ अंधी-गलियाँ हैं |खनिज माफिया हैं |लुटेरे कांट्रेक्टर घुसे हैं |शिक्षा के व्यापम माफिक घोटालेबाज हैं |ट्रांसफर पोस्टिंग करवाने वालों की लाबियाँ हैं |बात की अनदेखी करने वाले ठुल्ले हैं |इन सब के बीच मेरे कदम कहाँ टिक पायेंगे.....?जिस पार्टी से चुनाव लडूंगा वही अगले दिन बाहर का रास्ता दिखा देगा |तो मेरे भाई ,बंद मुट्ठी जो लाख की है, उसे मेरी पूजी समझ के बंद ही रहने दो .....क्यों खुलवाने पे तुले हो ......?
इसके मायने हम क्या निकालें ....?अपने देश को जिस चुंगुल में फंसे होने की बात आप कह रहे हैं ,उसी में ये देश जकड़ा रहेगा ......?कोई उद्धार करने वाला मसीहा नहीं आयेगा ......?
नहीं एकर जी ! आपका ख्याल गलत है ...महाभारत में दिए गए भगवान के वचनों पर आस्था रखो .....
“यदा यदा ही धर्मस्य ,ग्लानिर्भवति भारत:
अभ्युथानामधर्मस्य तदात्मान्यं सृजाम्यहम
वे, “जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होने पर, अपने रूप को रचने और साकार रूप में लोगो के बीच प्रकट होने का वादा किये हैं |”
घबराने की कतई जरुरत नहीं इधर ,मै भी प्रयासरत हूँ , एक सेना ऐसी खड़ी करू जो अन्याय ,अत्याचार के विरोध में, आने वाले दिनों में इससे लड़ सके.....तब तक मुझे बख्श दो.......? ..मुझे .. किसी सीट से टिकट मत दो |

 

 

 


सुशील यादव

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