चलो वहां,चले जहाँ, जमीन-आसमा न हो
कदम कदम में हक मिले ,भले कि रहनुमा न हो
दिखाइ दे रहा हमे, अजीब हालतें यहाँ
सियासती जमीन दांव,पाँव जानता न हो
लुटे-लुटे से वो रहे ,निगाह की फरेब में
दिलो कि जान से, कोई पुकारता न हो
हमारे पास ख़्वाब है , धुंध की खासियत लिए
समय का आईना कभी, जिसे संवारता न हो
जरा हमे मिले सही ,हिम्मत की बुलंदियां
मिला गरज को ख़ाक में ,हमे पछाड़ता न हो
कटे वनों से डर किसे ,न दहशत अब फैलती
'सुशील'शेर कागजी ,इधर दहाड़ता न हो
सुशील यादव
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