जिसे होना जहाँ चाहिए, वहां पर नहीं मिलता
तेरी आँखों में पहले सा, समुन्दर नहीं मिलता
जंगल तब्दील हो गए हैं , शहर के बियाबान में
सपेरों को नुमाइश हेतु , अजगर नहीं मिलता
जुदा हो के ,हमी से दूर होता गया साया
वो अँधेरे कभी बेझिझक आ कर नहीं मिलाता
बंद आखों किया जाए किसी पे यकीन बता
मेरे मायूस दिल को वो , चारागर नहीं मिलता
बना के ‘बुत’ , हिफाजत से रखा बहुत मगरूर दिल
तभी संगदिल को ढूढे से , पत्थर नहीं मिलता
सुशील यादव
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY