Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इस संगदिल को ...

 

जिसे होना जहाँ चाहिए, वहां पर नहीं मिलता
तेरी आँखों में पहले सा, समुन्दर नहीं मिलता

 

जंगल तब्दील हो गए हैं , शहर के बियाबान में
सपेरों को नुमाइश हेतु , अजगर नहीं मिलता

 

जुदा हो के ,हमी से दूर होता गया साया
वो अँधेरे कभी बेझिझक आ कर नहीं मिलाता



बंद आखों किया जाए किसी पे यकीन बता
मेरे मायूस दिल को वो , चारागर नहीं मिलता


बना के ‘बुत’ , हिफाजत से रखा बहुत मगरूर दिल
तभी संगदिल को ढूढे से , पत्थर नहीं मिलता

 




सुशील यादव

 

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