Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जले जंगल में

 

होठ सीकर चुप्पियों में जीता रहा आदमी
दर्द आंसू , जहर खून पीता रहा आदमी

 

तुम ज़रा दाग पर दामन बदलने की सोचते
दाग-वाली, कमीजो को सीता रहा आदमी

 

जल उठे जंगलो में उम्मीदों के परिंदे कहाँ
सावन दहाड़ता खूब चीता रहा आदमी

 

काट ले बेसबब , बेमतलब उनको, बारहा
महज उदघाटनों का ये, फीता रहा आदमी

 

साफ नीयत, पढ़ो तो, किताबे कभी ,संयम की
हर सफा के तह कुरान- गीता रहा आदमी

 

 

 

सुशील यादव

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