होठ सीकर चुप्पियों में जीता रहा आदमी
दर्द आंसू , जहर खून पीता रहा आदमी
तुम ज़रा दाग पर दामन बदलने की सोचते
दाग-वाली, कमीजो को सीता रहा आदमी
जल उठे जंगलो में उम्मीदों के परिंदे कहाँ
सावन दहाड़ता खूब चीता रहा आदमी
काट ले बेसबब , बेमतलब उनको, बारहा
महज उदघाटनों का ये, फीता रहा आदमी
साफ नीयत, पढ़ो तो, किताबे कभी ,संयम की
हर सफा के तह कुरान- गीता रहा आदमी
सुशील यादव
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY