Swargvibha
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कभी खुद को खुद से

 

घनाक्षरी/ गजल

 


कभी खुद को खुद से ,रूबरू हो कर देखो
मिट्टी बारिश की ,खुश्बू हो कर देखो

 

 

रिश्ते टूटे - बिखरे ,दिखते हैं आसपास
जोड़ने की नीयत हो ,शुरू हो कर देखो

 

 

बंद कमरा, तल्खी ,घुटता हुआ सा दम
खुली हवा में सर्द आरजू हो कर देखो

 

 

जो चल जाए गहरे ,वो आसान तिलस्म
जो छा जाए सही ,जादू हो कर देखो

 

 

कहाँ से कहाँ दुनिया ,देखते- देखते चली
किसी कोने में खड़े हो, बाजू हो कर देखो

 


सुशील यादव

 

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