Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुझको कब आया.....

 

समझ सोच के सही तुम फैसला करना
पूजा मस्जिद में या मंदिर सज्दा करना

 

भरी बारिश , नहीं मुमकिन , खुले रहना
गर्म दोपहर याद लपट बचा करना


इसी तजुर्बे , निभा लेते दुनियादारी,
सुन के आहट किस कदम से चला करना


,
उम्मीद के हर परिंदे को, हिदायत हो
जहाँ आकाश हाथ लगे ,उड़ा करना

 

जो दिल उतरे, किताबें मजहबी उनको
तहे दिल से, गुनना , सुनना –पढ़ा करना


किसी को चेहरा दिखता नकाब छुपा
कभी खुद से, कहाँ चाहा , छिपा करना

 

 

 

सुशील यादव

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