Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सहूलियत की खबर.....

 

तेरी उचाई देख के, कांपने लगे हम
अपना कद फिर से, नापने लगे हम

 

हम थे बेबस यही, हमको रहा मलाल
आइने को बेवजह, ढांपने लगे हम

 

बाजार है तो बिकेगा ,ईमान हो या वजूद
सहूलियत की खबर ,छापने लगे हम

 

दे कोई किसी को,मंजिल का क्यूँ पता
थोडा सा अलाव वही , तापने लगे हम

 

वो अच्छे दिनों की ,माला सा जपा करता
आसन्न खतरों को ,भांपने लगे हम

 

 

सुशील यादव

 

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