Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सरकारी स्कूल में पढ़े ....नया भारत गढें ....

 

माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ का, स्वागत किये जाने योग्य फैसला, अखबार राजस्थान पत्रिका दिनांक १९ अगस्त १५ के माध्यम से पढने को मिला |
इस अहम् फैसले में सभी जन-प्रतिनिधियों ,नौकरशाह ,व न्यायाधीशों के बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढाने का आदेश दिया है |
वर्तमान में बहुत कम सरकारी कर्मी हैं, जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं |इसके लिए जो भी व्यवस्था हो किया जावे |
कुछ दिनों पहले , मैंने अपनी व्यंग रचना, “सब कुछ सीखा हमने” जो रचनाकार के ११जून १५ को प्रकाशित है ,एक संभावना व्यक्त किया था ,कि
“ वैसे अपने देश में, राजनीतिग्य लोग भ्रामक और बेहूदा बयान आये दिन दिए रहते हैं|
किसी दिन, किसी के श्रीमुख से ये सुन लें कि “कम से कम दस साल तक सरकारी स्कूल में पढ़े बच्चो को सरकारी सेवा में लिया जाएगा” तो आश्चर्य ना करे |”
आज जब हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आदेश दिया है कि जनतिनिधियों, नौकरशाह ,व् न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़े, तो राज्य सरकार को इसकी संभावना और इसके क्रियान्वयन में फासला जल्द से जल्द दूर करने की कोशिश करनी चहिये |
इस फैसले से दृष्टव्य है,कि सरकारी स्कूलों के दिन जल्द फिर जायेंगे |
अभी दिखता ये है कि, सरकारी स्कूल की संचालन व्यवस्था मानो भगवान भरोसे छोड़ दिया गया हो |
गाव देहात में जिस मास्टर को पढाना हो पढ़ा देता है जिसे नहीं पढाना होता वो अपने प्रधानाचार्य से मिली भगत में अल्टरनेट डेट वाली ड्यूटी निभाता है |किसी स्कूल में शिक्षक की कमी, कहीं शिक्षक हैं तो पढने वाले नदारद .....|
सरकारी स्कूल में दाखिला प्राप्त बच्चों को,अगर मिड-डे मील का लालच न हो तो बच्चे स्कूल की तरफ झांकने भी न आयें|
इन दिनों हम कमोबेश मिड-डे मील आधारित शिक्षा देने लग गए हैं |वो जमाने लद गए जब दस से पांच तक बच्चे घर की रुखी-सुखी खाकर पूरी इमानदारी से अपनी पढाई किया करते थे |
हम सब ,पढाई के स्तर से समझौता किये बैठे हैं |हमारे सरकारी स्कूल के पढने वाले बच्चों का बौधिक विकास शहरी स्कूल और पब्लिक स्कूलों में पढने वाले बच्चो से प्राय; कमतर पाया जाता है |
इन स्कूलों की दीगर व्यवस्था भी गौर करने लायक होती हैं |न सेनीटेशन,न पीने का साफ पानी., न ढंग के वाश-रुम,न बिजली न पंखे और तो और कहीं-कहीं बरसात में टपकते हुए छत कब आफत बन गिर पड़ें कह नहीं सकते |
अदालती फैसले की नजर से देखा जाए तो बड़े ओहदे-दारों के बच्चे जब यहाँ पढ़ेंगे तो तमाम जर्जर सूरतेहाल शिक्षण-संस्थानों का निराकरण आप ही आप होना शुरू हो जाएगा |हालत में उल्लेखनीय सुधार आने की गुजाइश निकल पड़ेगी |
इन बच्चो के जागरूक पालक अपने बच्चो के भविष्य को यूँ ही जाया होते नहीं देख पायेंगे |यह जागरूकता अभी सरकारी स्कूल में पढने वाले बच्चों के अधिकाँश पालकों में देखने को नहीं मिलती |उनको रोजी-रोटी कमाने की व्यस्तता इस काम में रुकावट या अवरोध पैदा करने वाले कारणों में प्रमुख है |
जागरूक पालक,जब अपने बच्चो को सरकारी स्कूल के हवाले करेगे तो वे गाहे-बगाहे , एक नजर बच्चो को मिलने वाली सुविधाओं की तरफ जरुर डालेंगे |वे घर में होमवर्क कराते हुए ही जान लेंगे, कि किस स्तर की शिक्षा उनके बच्चे पा रहे हैं |या दी जा रही हैं......इसमें वे असंतुष्ट होंगे तो शिकायत ऊपर तक पहुचेगी |
इस व्यवस्था के लागू होने पर,साथ में पढने वाले गरीब तबको के छत्र छात्राओं को बहुत लाभ मिलेगा |वे बड़े घर के बच्चो को देखकर बातचीत की तहजीब,तौर तरिका और सलीका सहज सीखते रहेंगे|ग़रीबों में एक झिझक, जो अंदरूनी किसी कोने में दबी रहती है वह स्वत; दूर होते दिखेगी |
एक ज़माना था, जब पब्लिक स्कूलों की भीड़ नहीं थी, आज कुकुरमुत्ते की तरह जगह जगह ये स्कूल खुले हैं |भारी भरकम फीस ,डोनेशन ,बात-बात पर चंदा उगाही ,ड्रेस कापी किताबे उन्ही के कहे अनुसार लेने की बाध्यता जिसमे उनका कमीशन शामिल होता है,मिडिल -क्लास के लोग निरंतर झेलते आ रहे हैं | उनके सीमित आय में से बहुत बड़ा हिस्सा इस पढाई की भेट चढ़ जाता है | इस उच्च स्तरीय शिक्षा की अंधी-दौड़ में उन्हें मजबूरन इसलिए शामिल होना पड़ता है कि कही काम्पीटिशन की रेस में उनके बच्चे उच्च वर्ग के बच्चो से पीछे न रहना पड़े |
माध्यम और निम्न-आय वर्गीय परिवार के लिए ,यह बात, स्कूल में आकर ही खत्म नहीं होती .स्कूल के बाद भारी भरकम खर्चे वाला ट्यूशन का दबाव,फिर उसके तुरंत बाद किसी स्तरीय कालिज में दाखिले के लिए ली जाने वाली फीस ....... उनकी कमर ही टूट जाती है |
इन सभी समस्याओ का निदान माननीय न्यायाधीश के फैसले से संभव होते दीखता है| सभ्रांत घरो के बच्चो सहित, देश के तमाम बच्चो को कम से कम दस साल अगर सरकारी स्कूल में पढ़वाये जाएँ तो शिक्षा के स्तर में एक रूपता रहेगी | कम्पीटिशन का समान स्तर होने से निम्न व मध्यम श्रेणी के परिवार को राहत का अहसास होगा |शिक्षा में बेतहाशा खर्च की सीमा बंध जाने से सभी को समान अवसर की उम्मीदें उपलब्ध हो जायेंगी |एक दूसरे के प्रति भाईचारा का अक्षुण भाव पनपेगा |
अब इस फरमान के लागू होने का स्वरूप क्या होना चाहिए ....?
कानून यूँ बनना चाहिए कि सरकारी स्कूलों में कम से कम दस वर्ष तक बच्चे अध्ययन शील रहें |
प्रावधान यह होना चाहिए कि बिना ऊपर बताये ,न्यूनतम अवधि के दाखिले या पढाई किये बच्चो को किसी ‘सरकारी सेवा’ के पात्र न समझा जावे |
किसी नौकरी या किसी बिजनेस के सिलसिले में विदेश जाने की पात्रता भी उन्ही को उपलब्ध हो जो इन स्कूलों के पास-आउट हों |उनके पासपोर्ट में,इस पात्रता बाबत स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिए |
इसकी विश्वसनीयता, आगे आने वाले दिनों में, पहला बेच निकलने के बाद सत्यापित की जा सकती है |
सरकारी स्कूलों के, परिवेश में शिक्षित बच्चे, अपने देश को बहुत नजदीक से जानते हुए पाए जायेंगे |इनमे से आगे चलकर जो आई ऐ एस ,आई पी एस या दीगर उच्च अधिकारी बनेगे, उन्हें मध्यम या निम्न वर्गीय समस्याओं का निराकरण करने में अपने विवेक का इस्तेमाल करना बखूबी आ जाएगा | उन्हें देश में कानून व्यवस्था, और अन्य जरूरतों का सम्यक हल ढूढना, मानो चुटकियों का काम लगेगा |जिस परिवेश में उसकी पोस्टिंग हुई है, वहां की आवश्यकता अनुरूप, कम लागत में अधिक फायदे की प्लानिग और जमींन से जुड़े आम-जन के हित-साधक काम अविलंब होंने लगेंगे |
वे जिस फील्ड में रहेंगे, कामयाबी के नये मुकाम तक देश को ले जायेगे,भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने अगर देखना हो तो शिक्षा में सुधार के लिए यह कदम उठाना देश-हित में, जन-हित में, जरुरी दिखता है |

 

 

 

सुशील यादव

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