Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तेरे शहर में

 

शहर में घूम के देखा ,मुस्कान न पाए हम
पत्थर दिखी हवेली ,एक मकान न पाए हम

 

मिली, नाजुक बदन लड़की , शिकन में चेहरा
क्या उसने कहा रुक के, पहचान न पाए हम

 

क़तर के रखने वाले, उन्मुक्त परिंदों के पर
क्या तुझको रहा हासिल, उड़ान न पाए हम




ये अँधेरे चुभे दिल पर, या मुस्कान ~तेरी
कहाँ से तीर था छूटा, कमान न पाए हम

 

हमारी पूछ- परख रही , न जाने क्या कमी
रुठ के, वापस हो लौटे ,मेहमान न पाए हम

 

 

 

सुशील यादव

 

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