शहर में घूम के देखा ,मुस्कान न पाए हम
पत्थर दिखी हवेली ,एक मकान न पाए हम
मिली, नाजुक बदन लड़की , शिकन में चेहरा
क्या उसने कहा रुक के, पहचान न पाए हम
क़तर के रखने वाले, उन्मुक्त परिंदों के पर
क्या तुझको रहा हासिल, उड़ान न पाए हम
ये अँधेरे चुभे दिल पर, या मुस्कान ~तेरी
कहाँ से तीर था छूटा, कमान न पाए हम
हमारी पूछ- परख रही , न जाने क्या कमी
रुठ के, वापस हो लौटे ,मेहमान न पाए हम
सुशील यादव
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