Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ये हसरते न छीन..

 

 

मुझसे मेरे दोस्त, तू परछाई न मांग
कितनी अजीब मेरी,तनहाई न मांग


लिखता दर्द गम के ,अहसास को भूलने
थोडी सी बच गई है ,रोशनाई न मांग

 

बद मुट्ठी रखा हूँ ,मै छुपा के जन्नतें
ये हसरते न छीन , वो खुदाई न मांग

 

गुनाह की मुकर्रर ,दिल को सजा वो मिले
न फिजूल वकालते,औ रिहाई न मांग

 

जज्ब किये बैठा हूँ ,लोगों के गिले-शिकवे
हर बात कह थका ,तो सफाई न मांग

 

 

@@@ सुशील यादव .....

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