मुझसे मेरे दोस्त, तू परछाई न मांग
कितनी अजीब मेरी,तनहाई न मांग
लिखता दर्द गम के ,अहसास को भूलने
थोडी सी बच गई है ,रोशनाई न मांग
बद मुट्ठी रखा हूँ ,मै छुपा के जन्नतें
ये हसरते न छीन , वो खुदाई न मांग
गुनाह की मुकर्रर ,दिल को सजा वो मिले
न फिजूल वकालते,औ रिहाई न मांग
जज्ब किये बैठा हूँ ,लोगों के गिले-शिकवे
हर बात कह थका ,तो सफाई न मांग
@@@ सुशील यादव .....
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