Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ये खेल ..

 

ये खेल है गर अच्छा, ये खेल दुबारा हो
तुम जुल्म करो उतना,तकलीफ गवारा हो

 

मै डूब न जाऊं दरिया, समझ में ये रखना
मझधार निपट लौटूं , तो पास किनारा हो

 

हर कोई है उलझा सा, दिन रात सियासत में
मतदान किया जिसने, गलती से दुलारा हो

 

मै हूँ चश्मदीद मगर, क्या ख़ाक गवाही दूँ
इन्साफ के दर ने, तव्वज्जो से पुकारा हो

 

आसान बहुत जीवन के, राह चलो देखो
मन अगर मदारी सा, हाथो में चिकारा हो

 

क्यं ढोल सा पीटा है, मनहूस रिवाजों की
कह दो कि हिमायत से, अपनों ने निहारा हो

 

 

 

सुशील यादव

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