Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मोहन राकेश कृत ‘आषाढ़ का एक दिन’ में ऐतिहासिकता

 

स्वप्नानायर, तमिलनाडुकोयमबत्तुर
कर्पगम विश्वविद्यालय में
डॉ.के.पी.पद्मावती अम्मा के मार्गदर्शन में
पी.एच.डी केलिए शोधरत

 


मोहन राकेश विख्यात नाटककार और कहानीकार है । आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य के विकास में उनका योगदान चिर स्मरणीय है । राकेश का पूरा नाम मदन मोहन गुगलानी है । उनका जन्म 1925 में पंजाब के अमृतसर में हुआ था । उनकी उच्च शिक्षा औरिएण्टल कालेज, लाहौर में हुई । 1947में भारत - पाकिस्तान विभाजन के फलस्वरूप वे जलंधर आकर बसे । इसलिए यहाँ से उन्होंने हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया । कुछ वर्ष तक शिमला, बंबई और जलंधर में प्रायध्यापक वृत्ति किया । आगे नौकरी छोड़कर पूरा समय स्वतंत्र लेखन में लगने रहे । 1962-63 वर्ष में राकेश ने ‘सारिका’ के संपादक रहे ।
मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार है । उन्होंने नाटक, कहानी, उपन्यास, यात्रा विवरण, निबंध आदि लिखकर साहित्य क्षेत्र में अपना स्थान स्वयं निर्धारित किया है । किंतु नाटककार के रूप में राकेश को विशेष ख्याति मिली है । ‘लहरों का राजहंस’, ‘आषाढ़ का एक दिन’ और ‘आधे - अधूरे’ हिन्दी साहित्य में उनकी कीर्ति स्तंभ है । ‘आखिरी चट्टान तक’ स्वच्छंद प्रेमी राकेश की यात्रा विवरण है । ‘अंधेरे बन्द कमरे’, ‘न आने वाला कल’ आदि कृतियाँ हमें राकेश का उपन्यासकार का परिचय देता है। 'पैर तले ज़मीन' नामक नाटक अपूर्ण छोड़कर राकेश 1972 में मिट्टी में समा गये ।
‘आषाढ़ का एक दिन’ हिन्दी नाट्य साहित्य केलिए राकेश से मिली महत्वपूर्ण उपलब्धि है । यह नाटक इतिहास तथा कल्पना के मणि कंचन योग से लिखी उच्चतर कृति है। राकेश ने इतिहास का आश्रय लेकर उसके काल्पनिक संदर्भों को नाटकीयता प्रदान कर दिया है ।उन्होंने कहा है – “ऐतिहासिक नाटककार इतिहास की बत्ती में कल्पना का दिया जलाकर रसानुभूति का सुंदर प्रकाश फैला देता है । जिस प्रकार समस्त साहित्य का कार्य मानवता के विकास में योग देता है, उसी प्रकार उसके एक अंग ऐतिहासिक नाटक का कार्य मानव के अतीत से प्रेरणा लेकर वर्तमान की आलोचना करना और भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत करना है ।”उन्होंने अपने नाटकों के लिए सीमित ऐतिहासिक परिवेश को स्वीकार किया है । ‘आषाढ़ का एक दिन’ में इतिहास और कल्पना होने से इसे पूर्ण रूप में ऐतिहासिक या काल्पनिक नाटक कहना अनुचित है । इसे आधुनिक मानवीय भाव बोध से पूरित ‘इतिहास संपन्न आधुनिक’ नाटक कहना समुचित है । नाटककार के शब्दों में – “साहित्य में इतिहास अपनी यथा तथ्य घटनाओं में व्यक्त नहीं होता, घटनाओं को जोड़ने वाली कल्पनाओं में व्यक्त होता है, जो अपने ही एक नये और अलग रूप में इतिहास का निर्माण करती है ।”नाटककार इतिहास को लेकर अपने कल्पना के रंग में रंगकर प्रस्तुत करता है । ऐसे नाटकों को ऐतिहासिक - काल्पनिक नाटक कहते है ।
‘आषाढ़ का एक दिन’ में एक प्रत्यक्ष कथा की पृष्ठभूमि होने के समान इसकी एक अप्रत्यक्ष पृष्ठभूमि भी होती है । इस नाटक का प्रत्यक्ष कथा कवि कालिदास के जीवन से संबंधित कथा है । अप्रत्यक्ष पृष्ठभूमि सृजन प्रक्रिया की आज़ादी से संबंधित है । विश्वविख्यात कवि, भारत का वरदान कालिदास एक इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति है । यह कवि कुल गुरु कालिदास मोहन राकेश केलिए एक प्रतीक मात्र ही है । स्पष्ट कहें तो यहाँ के कालिदास आज़ादी के साथ सृजन प्रक्रिया में लीन आधुनिक रचनाकार ही है । वही कालिदास में राकेश ने अमानवीय गुण - गणों को नहीं डाला है ।
मोहन राकेश के मत में कवि कालिदास का जन्म स्थान कश्मीर नहीं है । वह उज्जयिनी के उत्तर में संभव हो सकती है । राकेश इतिहास से एक पग आगे जाकर कहते है कि सुवर्णगिरि या उसका आसपास कालिदास का जन्मस्थान है । वह बहुत सुंदर और आकर्षक पर्वत श्रृंखला है । अपना निर्णय साफ करने केलिए कालिदास के द्वारा मल्लिका से कहते है – “कुमार संभव की पृष्ठभूमि यह हिमालय है और तपस्विनी उमा तुम भी हो ।मेघदूत के यक्ष की पीड़ा मेरी पीड़ा है और विरह विमर्दितयक्षिणी तुम हो ।” यहाँ हम यह भूलना नहीं चाहिए कि राकेश ने कवि कालिदास को गुप्त साम्राज्य का राज कवि स्वीकारा है । यह बात राजपुरुषदन्तुलसे उन्होंने व्यक्त किया है ।
इतिहास से सहारा लेने केलिए राकेश ने जैन विद्वान तुंगाचार्यसे सहायता उठा ली है । उनके अनुसार राज दुहिताप्रियंगु मंजरी से कालिदास की विवाह की बात स्वीकार किया है । हम अब तक पढ़े - समझे कालिदास कश्मीर की पार्वत्य भूमि में जन्मे एक महान विश्व प्रसिद्ध कवि है । किंतु राकेश चित्रित कालिदास एक क्षेत्रीय कवि के सीमा से बाहर नहीं जाता । यह प्रादेशिक कवि को आचार्य वररुचि उज्जयिनी ले जाता है । वह वहाँ राज कवि के पद -भार में आसीन हो जाता है । आगे उन्हें काश्मीर का शासक नियुक्त किये गये । यहाँ यह मालूम होता है कि राकेश का कालिदास उज्जयिनी में जन्मे और कुछ समय काश्मीर में बसे कवि है । अंत में कश्मीर से विरक्त कालिदास पुन: मल्लिका के पास लौटता है । लगता है कि राकेश इतिहास को सुधारने का दायित्व ले रहा है ।
कालिदास का जीवन काल प्रागैतिहासिक काल है । जन्म वर्ष, जन्म स्थान या शिक्षा- दीक्षा के बारे में उचित जानकारी अनुपलब्ध है । अतःकालिदास के बारे में एक निष्पक्ष निर्णय पर पहुंचना आसान नहीं है । लगता है कि राकेश ने कालिदास संबंधी प्राप्त खबरों से स्वार्जितकाल्पनिकता को मिलाकर ‘आषाढ़ का एक दिन’ का चयन किया है । कथा में इतिहास और कल्पना मिश्रितकरने के समान कथापात्रों में भी दोनों प्रकार के प्रयोग किया है । ‘आषाढ़ का एक दिन’ में वर्णित कालिदास, मल्लिका तथा प्रियंगुमंजरी को छोड़कर बाकी सभी पात्र काल्पनिक है । वैसे नाटक में घटित संदर्भों में अधिकांश भावना - निर्मित है। इतिहास का जैसा - वैसा चित्रण इतिहास ही रहेगा, उसे नाटक नहीं कहा जा सकता । कुछ लोगों का आक्षेप है कि राकेश ने इतिहास को गलत रूप में चित्रित किया । ऐसे लोग यह न भूलें कि इतिहास और नाटक अलग - अलग चीज़ है ।“प्रस्तुत नाटक में वर्तमान युग की समस्याओं को निरूपित करने केलिए ही कालिदास को चुना है ”- राकेश का यह मत आक्षेप दूर करने के लिए पर्याप्त है ।राकेश ने कालिदास को एक व्यक्ति के रूप में न मानकर महान सृजन प्रतिभा के प्रतीक माना है । यह नाटक हमें इतिहास के द्वारा आधुनिक भाव जगत की ओर ले जाता है । यह है मोहन राकेश के रचना विशिष्टता । उनका नाटक बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध के जीवन तथा साहित्य का नमूना है । इसलिए राकेश आधुनिक नाटकों के मसीहा कहा गया है ।

 

 


Written by Swappna Nair, Research Scholar, under the guidance of Dr.K.P.PadmavathiAmma, Karpagam University Coimbatore.

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