Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बोझ बढ़ता जा रहा है ढो रहा है

 

• बोझ बढ़ता जा रहा है ढो रहा है
• आदमी बस पीठ बन कर रह गया है

• जो यहाँ जिससे मिला उस सा हुआ है
• शख्सियत सबकी यहाँ पर गुमशुदा है

• खुद मुसीबत है ये खुद ही के लिए अब
• भीड़ बनकर भीड़ में इंसाँ दबा है

• है मुझे इसकी खुशी खुशियाँ नहीं हैं
• और ये गम है के हर गम सालता है

• कर दिया ज़ख़्मी हमीं ने मौसमों को
• वक्त पर बारिश अगर हो हादसा है

• जो यहाँ हैरान है हालात पर वो
• अब हमारी ही तरह बस सोचता है

• आज ये कॉफी बड़ी अच्छी लगी है
• ये तुम्हारे साथ का ही ज़ायका है

• प्यार का पौधा हुआ है बोनसाई
• दिल हमारा आज गमले मे उगा है

• रूह ‘आतिश’ की ठिठुरती जा रही है
• आँच बढ़ जाये ज़रा सी ये दुआ है

 

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