(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',
दूध, पानी में मिलाया जा रहा है,
याँ मिलन का गीत गाया जा रहा है।
अब दिखाना आईना अपराध होगा,
इक नया कानून लाया जा रहा है।
आ रहा है मालदारों का मसीहा,
इस लिए निर्धन सताया जा रहा है।
मत करो तुम याद अब दर्दे-हक़ीक़त,
ख़्वाब जन्नत का सजाया जा रहा है।
फिर किसी शैतान की ख़ातिर यहाँ पर,
ख़ून इन्साँ का बहाया जा रहा है।
घूमते बेखौफ़ अपने बीच क़ातिल,
कानून को ठेंगा दिखाया जा रहा है।
दाग़ दामन में लगे हैं 'सिद्ध' जिस के,
अब उसे नायक बताया जा रहा है।
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