आदर्शों को रौंद रहे आडम्बर आज।
वैभव का हो रहा दिखावा घर-घर आज।।
ख़ासों के घर रोज़ खुशी के जलते दीप।
आम आदमी जीता यारा मर-मर आज।।
नफ़रत फैलाते संतों के सम्मुख भीड़।
संत कबीरा के गुम ढाई अक्षर आज।।
निर्धन की निर्धनता पर हँसता है सेठ।
छलके निर्धन की आँखों से सागर आज।।
रातें उनकी, दिन भी उनके हैं रंगीन।
कूचे-कूचे विचरण करें निशाचर आज।।
तंत्र बदलने से इतना आया बदलाव।
ताज रखे हैं नेताओं के सर पर आज।।
जो परदों में छुपे हुए हैं उनके पाप।
चलो 'सिद्ध' अब कर दें बात उजागर आज।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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