जानता हूँ आप आने से रहे।
और हम भी मान जाने से रहे।।
बेगुनाही किसलिए साबित करें।
आप तो तुहमत लगाने से रहे।।
बात चाहे सच कहें सौ फीसदी।
आपकी हम कस्म खाने से रहे।।
जो ज़माना आपके माकूल है।
दूर हम ऐसे ज़माने से रहे।।
वक़्त की रफ्तार यारा तेज यूँ।
हम यहाँ गुजरे ज़माने से रहे।।
आपकी करतूत है उजड़ा चमन।
आप इक पौधा उगाने से रहे।।
आज की आजादियों के दरमियाँ।
'सिद्ध' देखो क़ैदखाने से रहे।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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