Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आखिर वह व्यापारी है

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

आम आदमी का जीवन ज्यों, दुख से भरी पिटारी है।
कैसे ना मन भारी होता, जब जीवन ही भारी है।।

 

आशंका से भोर भरी, भर जाते आँसू साँझ ढले।
रातों को सपनों की छलना, सारे दिन लाचारी है।।

 

तपता है पथ अंगारों सा, फिर भी वह चलता जाता।
बार-बार उठता-गिरता है, पर ना हिम्मत हारी है।।

 

पहले गले मिले है खल, फिर गला काटने लग जाता।
तुझसे उसे नहीं मतलब कुछ, बस मतलब से यारी है।।

 

सपनों की दूकान चलाने वाला जब आता है 'सिद्ध'।
हमको दुखी देख हँसता है, आखिर वह व्यापारी है।।

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ