आसमाँ पर सिर्फ़ वो ही वो नज़र अब आएँगे।
धीरे-धीरे वो सभी के पर कतरते जाएँगे।
जोर पंजों का नहीं तुम ने दिखाया गर परिंदो,
डाल पिंजरों में तुम्हें वो बेरहम तड़पाएँगे।
मिल गया तो मिल गया उनके करम से आबो-दाना,
माँगने की भूल की तो आँख वो दिखलाएँगे।
सख्त पाबंदी रहेगी और कुछ भी बोलने पर,
रात-दिन वो सिर्फ़ अपना नाम ही रटवाएँगे।
उनकी हाँ में हाँ मिलाने का रहेगा कायदा,
गर न सुर से सुर मिले तो भून डाले जाएँगे।
वक़्त रहते बात गर समझी तो समझो ठीक है,
'सिद्ध' कर दी देर तो फिर रोएँगे-पछताएँगे।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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