उनको आख़िर हाथ हम पर आज़माने हैं।
इसलिए ही उनने हम पर तीर ताने हैं।।
मत कहो उनको सितमगर बेख़ुदी में तुम।
पास उनके हर सितम के सौ बहाने हैं।।
जब भी आए साथ अपने स्वार्थ वो लाए।
हर ज़ुबाँ पर उनके ऐसे ही फ़साने हैं।।
दिल मिला उनसे,न उनसे हाथ ही यारा।
दिल फरेबी, हाथ में पहने दस्ताने हैं।।
जिनकी ख़ातिर ज़िन्दगी का दाँव हम खेले।
यार से दिख तो रहे थे,पर बिगाने हैं।।
खंजरों को जो छुपा कर सामने आए।
चेहरे उनके बड़े ही आशिक़ाने हैं।।
गर फरेबी रूठते हैं,रूठ जाने दो।
'सिद्ध' को तो आईने आख़िर दिखाने हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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