Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज़ाद वतन होगा

 

हर जख़्म पे मरहम का, जब तक न जतन होगा।
कुछ और गिरेंगे हम, कुछ और पतन होगा।।

 

नफ़रत के निशाँ सारे, मिट जाएँ जहाँ से जो।
तब ही तो सुकूँ होगा, तब ही तो अमन होगा।।

 

भरपूर हवा-पानी, सब ही को मिलेगा जब।
हर फूल खिले महके, तब देश चमन होगा।।

 

हक़ होंगे बराबर जब, खुश होंगे बराबर सब।
सब ही की ज़मीं होगी, सब ही का गगन होगा।।

 

हर मुख से मोहब्बत के, फूटेंगे अगर नगमे।
खुशियों की बहारों में, दुख अपना दफ़न होगा।।

 

कोई न बड़ा-छोटा,सब होंगे बराबर जब।
तब 'सिद्ध' हक़ीक़त में, आज़ाद वतन होगा।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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