Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अंजुमन में आपकी

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

अंजुमन में आपकी हम आ न पाए।
ठीक से मजबूरियाँ समझा न पाए।।

 

मेज़ पर हर चीज़ लज्जत दार थी पर।
इस लिए ग़मगीन थे चमचा न पाए।।

 

उनको नहलाया गया है रोशनी से।
चेहरा अपना मगर चमका न पाए।।

 

रात-दिन जयकार की तो किसलिए की।
कैसे हो सकता है वो तमगा न पाए।।

 

पल खुशी के कुछ ऊँचाई पर रखे थे।
ख़ूब की कोशिश मगर हम पा न पाए।।

 

धमकियों पर धमकियाँ मिलती रहीं पर।
'सिद्ध' को शैतान वो धमका न पाए।।

 

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