Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बन मशालों से चलो

 

बन मशालों से चलो, है रात साथी।
अंधकारों की ही होगी मात साथी।।

 

संघर्ष के पथ पर हमें चलना पड़ेगा।
ना निवेदन से बने अब बात साथी।।

 

अब हमारा हर क़दम हो सोचा समझा।
कर रहा वह हर क़दम पर घात साथी।।

 

वह हमारे कायराना मौन पर ही।
अब तलक जारी रखे उत्पात साथी।।

 

सामने उसके झुकेंगे जब तलक सर।
वह दिखाता ही रहेगा लात साथी।।

 

हम बुनें चल कोशिशों का सिलसिला यूँ।
ठीक हों, बिगड़े हुए हालात साथी।।

 

फैसला तुम ही करो, यह है हकीकत।
या अनर्गल 'सिद्ध' के जज्बात साथी।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

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