दगाबाज आज सगा ही है दोस्तो।
उसका असली रूप छुपा ही है दोस्तो।
उसके गुनाहों की सजा और इसका सर।
उसके साथ झूठी गवाही है दोस्तो ।।
चल रहा है वक़्त लुटेरों के साथ-साथ ।
वक़्त मुफ़लिसों का रुका ही है दोस्तो।।
उम्र भर का दर्द अगर साथ हो कोई ।
कहिए जहर को कि दवा ही है दोस्तो।।
कैसे होता मुफ़लिसों के साथ वो कभी।
वो जो रोज़-रोज़ बिका ही है दोस्तो ।।
है ये ख़बर हर तरफ़ कि वो है देवता ।
सच है ये,कि सिर्फ़ हवा ही है दोस्तो ।।
बारूद के इन्सान से न हाथ मिलाओ ।
उसके पास सिर्फ़ तबाही है दोस्तो ।।
कीजिए न उससे उम्मीदे-अमन 'सिद्ध'।
उसने फसल आग की चाही है दोस्तो।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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