वह सुकून-ए-ज़िन्दगी को मुस्कुरा कर ले गया।
हक़ हुकूमत का हमें सपने दिखा कर ले गया।।
जुनून-ए-नफ़रत हर तरफ़ था इस कदर छाया।
ज़ोर का तूफ़ान आया,छत उड़ा कर ले गया ।।
कोठरी काजल की थी,हर शख्स जिसमें दाग़ दार।
वह बड़ा फनकार था,ख़ुद को बचा कर ले गया।।
हैं कई जो आँख का काजल चुराते हैं यहाँ ।
वह हमारी आँख के सपने चुरा कर ले गया।।
वह समझता है कि मैंने कुछ नहीं देखा यहाँ।
कौन आया साथ अपने क्या छुपा कर ले गया।।
'सिद्ध' को मालूम है,उस शख़्स का क्या नाम है।
बीच महफ़िल से हमारा दिल उठा कर ले गया।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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