बिकने बौने याँ कतारों में खड़े हैं।
देख लीजे वो हज़ारों में खड़े हैं।।
वो किनारों से मज़ा लेते यहाँ पर।
एक हम हैं तेज़ धारों में खड़े हैं।।
मत सुलगते जंगलों की बात कीजे।
वो अभी यारा बहारों में खड़े हैं।।
हम गरीबों से नहीं नाता रहा अब।
चाँद हो के वो सितारों में खड़े हैं।।
'सिद्ध' को मालूम है उनकी हक़ीक़त।
कुछ फ़रेबी आ के यारों में खड़े हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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