(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
सपनों भरे नयन का बोलो क्या होगा।
ढोते भार भुवन का बोलो क्या होगा।।
तन का नंगापन ढक देंगे वस्त्र मगर ।
मन के नंगेपन का बोलो क्या होगा।।
नेताओं के साथ सभी सुख चल देंगे ।
तो फिर जन-जीवन का बोलो क्या होगा।।
केवल धन से गर होगी रिश्तेदारी ।
दीन-हीन निर्धन का बोलो क्या होगा।।
ईंट-ईंट का गर हो जाए बटवारा ।
अपने घर-आँगन का बोलो क्या होगा।।
केवल काँटे होंगे, फूल नहीं होंगे ।
तो अपने उपवन का बोलो क्या होगा।।
दाग़ दार लोगों का होगा मान अगर ।
कहे 'सिद्ध' पावन का बोलो क्या होगा।।
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