Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बौनों का इतराना

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

 

 

बौनों का इतराना देखा।
थोथा शोर मचाना देखा।।

 

फूल नहीं काँटे खिलते हैं।
फूलों का मुरझाना देखा।।

 

जिनके हाथ हुकूमत यारा।
आँखों में मयखाना देखा।।

 

झूठों ने बेशर्मी लादी।
साँचों का शर्माना देखा।।

 

अपराधी के पैर दबाता।
इन आँखों ने थाना देखा।।

 

अपनी जय-जयकार कराता।
शैतानों का नाना देखा।।

 

भटका-भटका नाम-पते से।
फिरता दाना-दाना देखा।।

 

जहाँ-जहाँ बस्ती चोरों की।
मौसम 'सिद्ध' सुहाना देखा।।

 

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