चमन की सैर पर सरकार निकले हैं।
चमन के आज सारे ख़ार निकले हैं।।
सलामी में सुनाए गीत बुलबुल ने।
सलामी में गुलों के हार निकले हैं।।
लगे है रात जैसे दोपहर दिन की।
लगे है चाँद जैसे चार निकले हैं।।
सुलगते जंगलों की बात जो छेड़ी।
सुलगते आँख से अंगार निकले हैं।।
कभी छाती फुलाकर देखते हम को।
कभी देखो लगे लाचार निकले हैं।।
चलाते गैर तो इतने नहीं चुभते।
चलाते तीर अपने यार निकले हैं।।
सुना था 'सिद्ध' उनकी है हवा लेकिन।
सुना तूफ़ान के आसार निकले हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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