Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

चमन की सैर पर सरकार निकले हैं

 

चमन की सैर पर सरकार निकले हैं।
चमन के आज सारे ख़ार निकले हैं।।

 

सलामी में सुनाए गीत बुलबुल ने।
सलामी में गुलों के हार निकले हैं।।

 

लगे है रात जैसे दोपहर दिन की।
लगे है चाँद जैसे चार निकले हैं।।

 

सुलगते जंगलों की बात जो छेड़ी।
सुलगते आँख से अंगार निकले हैं।।

 

कभी छाती फुलाकर देखते हम को।
कभी देखो लगे लाचार निकले हैं।।

 

चलाते गैर तो इतने नहीं चुभते।
चलाते तीर अपने यार निकले हैं।।

 

सुना था 'सिद्ध' उनकी है हवा लेकिन।
सुना तूफ़ान के आसार निकले हैं।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ