Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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छेड़ दी बात किस ज़माने की

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

छेड़ दी बात किस ज़माने की,
दिल में फिर हसरतें जगाने की।

 

क्यों दिखाता है आईना उस को,
उस को आदत है रूठ जाने की।

 

साफ़ कहता है उस का इतराना,
हाथ चाबी है अब खजाने की।

 

अपने-अपने गुरूर पाले हैं,
बात होगी न अब ठिकाने की।

 

उसने पहरे बिठा दिए जिस पर,
राह अपनी है आने-जाने की।

 

खाए जिस से हज़ार धोखे हैं,
सोचता क्यों है आजमाने की।

 

उसकी आँखों में जाने क्या देखा,
याद आई शराबखाने की।

 

उस ने मुस्कान से ढकी देखो,
आरज़ू आग फिर लगाने की।

 

जो भी कहना है 'सिद्ध' कह देंगे,
क्या ज़रूरत किसी बहाने की।

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