देख शैताँ, तू अगर झुक जाए तो धिक्कार है।
पाप की पदचाप सुन घबराए तो धिक्कार है।।
वह गरज कर झूठ को हर बार कहता सच रहा।
तू न सच को सच अगर कह पाए तो धिक्कार है।।
आदमीयत का तकाजा है कि हैं सब एक से।
फल नहीं मिल बाँटकर गर खाए तो धिक्कार है।।
प्रीत के आधार पर ही है टिका संसार ये।
गान नफ़रत के अगर तू गाए तो धिक्कार है।।
ताप तो संताप का हर एक सर पर है सवार।
तू अगर इस ताप से मुरझाए तो धिक्कार है।।
हर क़दम पर ही जिसे देते रहे हैं साथ हम।
वो हमारी सुन सदा ना आए तो धिक्कार है।।
मान की, सम्मान की, जब जंग हो तो यार सुन।
सर हथेली पर अगर ना लाए तो धिक्कार है।।
'सिद्ध' अपने जिस्म में जो जान है किस काम की।
खौफ़ खल का गर नगर में छाए तो धिक्कार है।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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