(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
आप से ही आप छल हैं कर दिए।
हाल कैसे आज-कल हैं कर दिए।
एक उनके ख़्वाब को देने जगह,
ख़्वाब कितने बेदखल हैं कर दिए।
इस कदर वो दे गए मायूसियाँ,
हसरतों के दूर पल हैं कर दिए।
दिल कभी मुश्किल सवालों से घिरा,
देख के वो यार हल हैं कर दिए।
फासले की क्या इनायत 'सिद्ध' है,
पास ही कुछ दरअसल हैं कर दिए।
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