Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दूर से वे थाह तेरी देखते

 

दूर से वे थाह तेरी देखते हैं।
ज़िन्दगी का दाह तेरी देखते हैं।।

 

कर किनारों से किनारा, डूब जा तू।
कितने मोती राह तेरी देखते हैं।।

 

कैसा बहरापन है यारो भीड़ का ये।
सुन न पाते आह तेरी, देखते हैं।।

 

इसलिए लटका दिया बाज़ार में है।
है किसे परवाह तेरी देखते हैं।।

 

फाड़ते छाती को, दिल को चीरते वे।
और कहते-'चाह तेरी देखते हैं'।।

 

रात हो, या दिन रहे, ये ख़्वाब आता।
'सिद्ध' होती वाह तेरी, देखते हैं।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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