ताज रखा झूठों के सर पर, यह भी एक हक़ीक़त है।
आज सचाई खाती ठोकर, यह भी एक हक़ीक़त है।।
सज्जनता दुत्कारी जाती,
कपटी फिरता ताने छाती।
अँधियारों की यहाँ हुकूमत,
टूटा दीपक,बिखरी बाती।।
चोरों का है मान यहाँ पर, यह भी एक हक़ीक़त है।
आज सचाई खाती ठोकर, यह भी एक हक़ीक़त है।।
सद्भावों की सरिता खोई,
सिसक-सिसक मानवता रोई।
अपनी-अपनी सब रट रटते,
सुनता नहीं किसी की कोई।।
अहंकार है रहता घर-घर, यह भी एक हक़ीक़त है।
आज सचाई खाती ठोकर, यह भी एक हक़ीक़त है।।
अपनेपन का महज दिखावा,
बात-बात पर ख़ून-खराबा।
ज्वालामुखी हुआ है इन्साँ,
उगल रहा नफ़रत का लावा।।
हाथ हुए हैं उसके खंजर, यह भी एक हक़ीक़त है।
आज सचाई खाती ठोकर, यह भी एक हक़ीक़त है।।
कुछ वैभव के मद में भूले,
कुछ के बुझे हुए हैं चूल्हे।
काम नहीं मिलता हाथों को,
रहते हाथ, लोग हैं लूले ।।
भटक रहा है यौवन दर-दर, यह भी एक हक़ीक़त है।
आज सचाई खाती ठोकर, यह भी एक हक़ीक़त है।।
काट रहे दिन लेटे-लेटे,
जो हैं बड़े बाप के बेटे।
जन साधारण की मत पूछो,
कुछ भूखे हैं, कुछ अधपेटे।।
आम आदमी जीता मर-मर, यह भी एक हक़ीक़त है।
आज सचाई खाती ठोकर, यह भी एक हक़ीक़त है।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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