Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फूल हैं ना तितलियाँ हैं

 

फूल हैं ना तितलियाँ हैं, बस झुलसते बाग हैं।
हम जिन्हें शबनम समझ बैठे थे वो तो आग हैं।।

 

कौन जाने कौन सा पल आ के दे जाए दगा।
चल संभल कर,आज चहुँदिश फन उठाए नाग हैं।।

 

कर गया शायद असर, शैतान का छोड़ा जहर।
देखते हैं हम कि हर मुख से निकलते झाग हैं।।

 

कैसे ना उम्मीदे-उलफ़त पर मिरी पानी फिरता।
हम वहाँ थे, जिस जगह बस नफ़रतों के राग हैं।।

 

टूटने का सिलसिला, ना टूटने का नाम ले।
एक होना था हमें, हम आज कितने भाग हैं।।

 

जो जगह हंसों की थी, अब 'सिद्ध' देखो उस जगह।
आ विराजे ढेर सारे, काले-काले काग हैं।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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