गाड़ी का एक चक्का
घर में घूम रहा है।
दूसरा चक्का गया है दूसरे शहर
जरूरी काम से।
घर का चक्का चिन्ता में डूबा है,
और चिन्ता में डूबा रहेगा,
जब तक कि लौट नहीं आता
दूसरा चक्का।
बिलकुल स्वाभाविक है
चक्के की चिन्ता।
गाड़ियों का कोई भरोसा नहीं
न जाने कब कोई गाड़ी
तोड़ा दे पटरी से नाता।
गर टूट गया एक चक्का
तो कैसे चलेगी
एक चक्के से गाड़ी?
मुआवजा कितना भी हो
चक्के का विकल्प तो
नहीं न हो सकता!
गाड़ियों में करते हैं सफ़र
गाड़ियों के चक्के।
एक गाड़ी उलटती है तो
टूट जाते हैं,
सैकड़ों-हजारों चक्के।
जितने चक्के टूटते हैं,
टूटती हैं उतनी ही गाड़ियाँ।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY