गर चाह न होवे,
निर्वाह न होवे।
परवाह नहीं कुछ,
गर वाह न होवे।
जिस प्यार में डूबूँ,
कुछ थाह न होवे।
ये जोश-ए-जवानी,
गुमराह न होवे।
इन्सान रहे बस,
वो शाह न होवे।
ख़ुद राह बना ले,
जो राह न होवे।
है कौन जिसे याँ,
दुख-दाह न होवे।
दे दर्द न इतना,
दिन,माह न होवे।
हो 'सिद्ध' तभी खुश,
बस आह न होवे।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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