Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गर चाह न होवे

 

गर चाह न होवे,
निर्वाह न होवे।

 

परवाह नहीं कुछ,
गर वाह न होवे।

 

जिस प्यार में डूबूँ,
कुछ थाह न होवे।

 

ये जोश-ए-जवानी,
गुमराह न होवे।

 

इन्सान रहे बस,
वो शाह न होवे।

 

ख़ुद राह बना ले,
जो राह न होवे।

 

है कौन जिसे याँ,
दुख-दाह न होवे।

 

दे दर्द न इतना,
दिन,माह न होवे।

 

हो 'सिद्ध' तभी खुश,
बस आह न होवे।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

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