गीत मिरे दर्पण के जैसे, यह गाना आसान नहीं।
हैं ये चालाकों के चिहरे, पढ़ पाना आसान नहीं।।
जिसकी चोरी पकड़ी जाए, वही चोर कहलाएगा।
वैसे कितने चोर यहाँ पर, बतलाना आसान नहीं।।
मतलब होगा तो आएँगे, दौड़े-दौड़े द्वारे पर।
फिर खोजो चाहे जितना भी, मिल पाना आसान नहीं।।
बड़े-बड़े जौहर दिखलाए, नई-नई तकनीकों ने।
कदम तले चंदा ले आए, पर खाना आसान नहीं।।
भीड़-भाड़ का ऐसा आलम, पल-पल लगते हैं धक्के।
एक बार जो घर से निकले, घर जाना आसान नहीं।।
सारी बात समझ कर जिसने, ओढ़ रखी है नासमझी।
कितनी समझ उड़ेलोगे तुम, समझाना आसान नहीं।।
जो पहने वो सच-सच बोले, बुना 'सिद्ध' ने बाना एक।
कौन भला पहनेगा इसको, यह बाना आसान नहीं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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