है ठिकाना पर ठिकाने का नहीं।
फिर कभी इस ओर आने का नहीं।।
गर कहें तो सुन रहे दीवारो-दर।
बिन कहे भी चैन पाने का नहीं।।
आजमाया जा चुका है शख़्स वो।
फिर उसे अब आजमाने का नहीं।।
भीड़ है, तू भीड़ में खो जाएगा।
पास ही रह, दूर जाने का नहीं।।
है नज़र का जाम मेरे सामने।
रुख करूँ मैं बादखाने का नहीं।।
'सिद्ध' जब भी याँ सितमगर आएगा।
राह में पलकें बिछाने का नहीं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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