हो गया तुम पर हमारा दिल फ़िदा कहते।
मुस्कराते आप तो हम हक़ अदा कहते।।
वक़्त के हर घाव पर थी वक़्त की मरहम।
वर्ना तो बेवक़्त ही हम अलविदा कहते।।
हम नफ़ा-नुकसान से गर तौलते नाते।
आपसे हम को रहा क्या फायदा कहते।।
कान हम उनकी ज़ुबाँ पर अपना रख देते।
गर शिकायत थी उसे बाक़ायदा कहते।।
'सिद्ध' कोई पूछता पहचान जो उनकी।
कहते न रूप-रंग हम उनकी अदा कहते।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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