जानवर आदमी में मिलते हैं
(ग़ज़ल)
खत्म सर्कस हुआ चलो यारो।
अपना तंबू समेट लो यारो।
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कुछ उसे दो कि शेर भूखा है,
और ख़ुद को भी कुछ तलो यारो।
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कुछ न हासिल हुआ तो रोना क्या,
अपने दो हाथ हैं मलो यारो।
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सारे जोकर उदास बैठे हैं,
दर्द उनका भी पूछ लो यारो।
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रात ठंडी है और काली है,
कुछ जलाओ या ख़ुद जलो यारो।
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जानवर आदमी में मिलते हैं,
जान लेते हैं, जान लो यारो।
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'सिद्ध' ये वक़्त का तकाज़ा है,
तीर ले लो, कमान लो यारो।
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- ठाकुर दास 'सिद्ध'
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