Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब उजालों की ज़रूरत थी बहुत

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

साथ अपने तो फक़त ग़म ही हुए,
यत्न हैं उपचार के कम ही हुए।

 

क्यों किसी का नाम लें अब हम यहाँ,
वेदना का जब सवब हम ही हुए।

 

जब उजालों की ज़रूरत थी बहुत,
मेहमाँ तब गाँव के तम ही हुए।

 

हमने सोचा था वो बदलेंगे नहीं,
आदमी ऐसे कि मौसम ही हुए।

 

हम बहुत ही आम से इन्सान हैं,
जख़्म लेकिन अपने अनुपम ही हुए।

 

दर्द जिस ने भी सुना हँसने लगा,
नैन लेकिन 'सिद्ध' के नम ही हुए।

 

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