Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ज़ख़्म जो दिल के दिखाता आपको

 

ज़ख़्म जो दिल के दिखाता आपको।
ये ज़रा ना रास आता आपको।।

 

दिल जो अपना ही नहीं अपना रहा।
किस ज़ुबाँ से मैं मनाता आपको।।

 

इसलिए था आपके मैं आस-पास।
देखना था मुस्कुराता आपको।।

 

है हया या है सलामे-हुस्न ये।
देखता हूँ सर झुकाता आपको।।

 

तब तो कोई बात ही ना थी सनम।
दिल मिरा जो भूल पाता आपको।।

 

आपको पाने की है जब आरज़ू।
'सिद्ध' कैसे ना बताता आपको।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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