Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जले होलिका विकार की

 

बीते मेल जोल में,जो है ज़िन्दगी मिली,
हमको दिवस चार की।
प्रहलाद का, आल्हाद रहे शेष,
जले होलिका विकार की।।

 

रंग हो, उमंग हो,
मन में प्रेम हो भरा।
गाने लगे आसमान,
नाचने लगे धरा।।

 

फैले अलौकिक छटा,सुदूर आसमान तक,
रंग की फुहार की।
प्रहलाद का, आल्हाद रहे शेष,
जले होलिका विकार की।।

 

सुन के गीत फाग का,
झूमने लगे पवन।
फूल-फूल के लिए,
चूमने लगे चमन।।

 

हो न अवहेलना, प्रीत की रीत की,
मीत की पुकार की।
प्रहलाद का, आल्हाद रहे शेष,
जले होलिका विकार की।।

 

गाता गीत प्रीत का
मन का तार-तार हो।
भोर हो समत्व की,
दूर अंधकार हो।।

 

फैले राग-रागिनी, ले के भाव प्रेम का,
दिगंत तक सितार की।
प्रहलाद का, आल्हाद रहे शेष,
जले होलिका विकार की।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

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